"मेवाड़ केसरी" व "हिन्दुआ सूरज" महाराणा प्रताप का जीवन परिचय | Maharana Pratap Hindi Biography

 


"मेवाड़ केसरी" व "हिन्दुआ सूरज" महाराणा प्रताप का जीवन परिचय | Maharana Pratap Hindi Biography


"मेवाड़ केसरी" व "हिन्दुआ सूरज" महाराणा प्रताप का जीवन परिचय | Maharana Pratap Hindi Biography


अकबर भारत महानतम विजेता व साम्राज्य निर्माता था। ऐसे सम्राट विरोध एक अकेले छोटे से राज्य ने किया और वह था मेवाड़। वह अकबर के साम्राज्य का अंग स्वेच्छा से न बना और न अकबर की कूटनीति और सैनिक शक्ति से। अकबर कही असफल हुआ तो मेवाड़ में, उसकी महत्वकांक्षा को अपूर्ण रहना पड़ा तो राजस्थान के इस पर्वतीय प्रदेश में। मेवाड़ अकबर की साम, दाम, दंड और भेद सभी नीतियों को पैरो तले  रोंद कर अपनी स्वाधीनता की रक्षा की। 

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय  

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई,1540 को कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह की रानी जयंवता बाई की कोख से हुआ। महाराणा उदयसिंह ने अपनी दूसरी पत्नी जैसलमेर के भाटी राजवंश की पुत्री धीरबाई से उत्पन्न पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जबकि प्रताप सबसे बड़े व योग्य पुत्र थे। महाराणा उदयसिंह की मृत्यु 28 फरवरी 1572 को हो गई। 

महाराणा प्रताप का राजयभिषेक 

उदयसिंह की मृत्यु के बाद जगमाल को राजगद्दी पर बैठा दिया गया लेकिन जालोर के अखयराज व ग्वालियर के रामसिंह ने इसका विरोध किया तथा प्रमुख सरदारों की सहमति से महाराणा उदयसिंह की उत्तर क्रिया से लौटकर 1 मार्च 1572 को गोगुन्दा में महाराणा प्रताप को राज्य सिहासन पर बिठाया। यह एक प्रकार से 'राजमहलों की क्रांति' थी क्योकि पूर्व महाराणा उदयसिंह के निणर्य को बदलकर गद्दी पर बैठे महाराणा जगमाल को हटा दिया गया था। 

जगमाल रुष्ट होकर बादशाह अकबर के पास चला गया बादशाह ने उसे जहाजपुर का परगना जागीर में दिया। जब प्रताप गद्दी पर बैठे तब उनकी उम्र 32 की हो चुकी थी। राणा प्रताप "कीका" के नाम से लोकप्रिय थे। प्रताप का विधिवत राज्याभिषेक समारोह कुम्भलगढ़ में मनाया गया। कहते है कि महाराणा प्रताप ने तब प्रतिज्ञा की थी कि जब तक वह चितोड़ को मुगलो से स्वतंत्र नहीं करा लेगा तब तक न तो थाली में रोटी खाएंगे और न ही बिस्तर पर सोयेंगे।

महाराणा प्रताप और चेतक

भारतीय इतिहास में जितनी महाराणा प्रताप की बहादुरी की चर्चा हुई है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे हाथी के मस्तक तक उछल सकता था। कुछ लोकगीतों के अलावा हिन्दी कवि श्यामनारायण पांडेय की वीर रस कविता 'चेतक की वीरता' में उसकी बहादुरी की खूब तारीफ़ की गई है। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक, अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊँचाई तक बाज की तरह उछल गया था। फिर महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया। जब मुग़ल सेना महाराणा के पीछे लगी थी, तब चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया, जिसे मुग़ल फौज का कोई घुड़सवार पार न कर सका। प्रताप के साथ युद्ध में घायल चेतक को वीरगति मिली थी।

महाराणा प्रताप की शादियाँ 

महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी उनकी पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है

1 महारानी अजबदे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास

2 अमरबाई राठौर :- नत्था

3 शहमति बाई हाडा :-पुरा

4 अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह

5 रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु

6 लखाबाई :- रायभाना

7 जसोबाई चौहान :-कल्याणदास

8 चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह

9 सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल

10 फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा

11 खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह

महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य यह है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितम्बर 1572 ई. में जलाल खाँ प्रताप के खेमे में गया, इसी क्रम में मानसिंह 1573 ई. में  भगवानदास  सितम्बर, 1573 ई. में तथा राजा टोडरमल दिसम्बर,1573 ई. प्रताप को समझाने के लिए पहुँचे, लेकिन महाराणा प्रताप ने चारों को निराश किया। इस तरह महाराणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप हल्दी घाटी का ऐतिहासिक युद्ध हुआ।

हल्दी घाटी का युध्द (21 जून 1576) 

महाराणा प्रताप व अकबर की सेनाओं के मध्य खमनोर गाँव  के पास की तंगघाटी व समतल भूमि हल्दी  मैदान में 21 जून 1576 को "हल्दीघाटी का प्रसिध्द युध्द" हुआ। हल्दीघाटी राजसमंद जिले  नाथद्वारा से 11 मील दक्षिण पश्चिम में गोगुन्दा और खामोनार के बीच एक संकरा स्थान है। इस युध्द में महाराणा प्रताप के साथ ग्वालियर के रामसिंह व उसके पुत्र शालिवाहन, भवानी सिंह व प्रताप सिंह, भामाशाह व उसका भाई ताराचंद, झाला मानसिंह, झाला बीदा, सोनगरा मानसिंह, डोडिया भीमसिंह, आदि प्रमुख व्यक्ति थे। 

इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की। वहीं ग्वालियर नरेश 'राजा रामशाह तोमर' भी अपने तीन पुत्रों शालीवाहन, भवानी सिंह, व प्रताप सिंह और पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गया।

हल्दीघाटी के युध्द मे महाराणा प्रताप घायल हो गये थे। प्रताप युध्द क्षेत्र छोड़ने को तैयार नहीं थे लेकिन झाला बिदा ने प्रताप का स्थान लिया और प्रताप के स्वामिभक्त सामंतो व सेनिको ने प्रताप को सुरक्षित स्थान पर जाने हेतु रवाना कर दिया। राणा प्रताप के अचानक युध्द भूमि से हट जाने के बाद मेवाड़ की सेना की हिम्मत टूट गई थी। झाला बीदा ने प्रताप का स्थान ले लिया। मुग़ल सेनिको ने झाला बीदा को ही प्रताप समझा व उन्हें मार गिराया। 

यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिन्ताजनक होती चली गई। 24,000 सैनिकों के 12 साल तक गुजारे लायक अनुदान देकर भामाशाह भी अमर हुआ।

इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी।

दिवेर का युध्द (अक्टुम्बर,1582 )

राजस्थान के इतिहास 1582 में दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है, क्योंकि इस युद्ध में महाराणा प्रताप के खोये हुए राज्यों की पुनः प्राप्ती हुई, इसके पश्चात महाराणा प्रताप व मुगलो के बीच एक लम्बा संघर्ष युद्ध के रुप में घटित हुआ, जिसके कारण कर्नल जेम्स टाॅड ने इस युद्ध को "मेवाड़ का मैराथन" कहा है।

महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की भूमि को मुक्त कराने का अभियान दिवेर से प्रारम्भ किया। दिवेर वर्तमान राजसमंद जिले में उदयपुर-अजमेर मार्ग स्थित है। दिवेर के शाही थाने का मुख़्तार सम्राट अकबर का काका 'सरिया सुल्तानखान' था। महाराणा प्रताप ने उस पर अक्टुम्बर 1582 में आक्रमण किया। मेवाड़ और मुग़ल सेनिको के मध्य निर्णायक युध्द हुआ। महाराणा प्रताप को विजय प्राप्त हुई। दिवेर की ख्याति चारो और फैल गई। प्रताप के जीवन के बहुत बड़े विजय अभियान का यह शुभ और कीर्तिदायी शुभारम्भ था। दिवेर की जीत के बाद महाराणा प्रताप ने चांवड में अपना निवास स्थान बनाया। 

प्रताप ने 1585 में अपने स्थायी जीवन का आरम्भ चावंड को मेवाड़ की नयी राजधानी स्थापित किया। उन्होंने चावंड को लूणा से विजित कर अपने अधीन किया प्रताप ने अंतिम 12 वर्ष और उनके उत्तराधिकारी महाराणा अमर सिंह के राजकाज के प्रारम्भिक 16 वर्ष चावंड में बिते। चावंड 28 साल मेवाड़ की राजधानी रहा। चावंड गाँव से लगभग आधा मील दूर एक पहाड़ी पर प्रताप ने अपने महल बनवाये।

19 जनवरी 1597 को प्रताप का धनुष की प्रत्यन्चा चढ़ाते हुए घायल हो जाने पर चावंड में देहांत हुआ।

महत्वपूर्ण तथ्य 

  • कर्नल टॉड ने हल्दीघाटी के युध्द को "मेवाड़ की थर्मोपली" और दिवेर के युध्द को "मेवाड़ का मेराथन" व प्रताप को "गौरव का प्रतीक" कहा। अबुल फजल ने हल्दीघाटी के युध्द को "खमनौर का युध्द" तथा बदायूनीं ने "गोगुन्दा का युध्द" कहा है। 
  • महाराणा  प्रताप को "मेवाड़ केसरी" व "हिन्दुआ सूरज" के नाम से भी जाने जाते है।  
  • हल्दीघाटी के युध्द में अकबर सेना के साथ उपस्थित एकमात्र इतिहासकार अब्द-अल-कदीर-बदायूंनी था। इसने सन 1595 ई. में "तारीख-ए-बदायूँनी" ग्रन्थ की रचना की। 
  • हल्दीघाटी के युध्द के बाद महाराणा प्रताप ने पहाड़ी व छापामार युध्द पध्दति अपनाकर मुग़ल सेनाओ के छक्के छुड़ाये। 
  • महाराणा उदय सिंह ने युद्ध की नयी पद्धति - छापामार युद्धप्रणाली इजाद की। वे स्वयं तो इसका प्रयोग नहीं कर सके परन्तु महाराणा प्रताप, महाराणा राज सिंह एवं छत्रपति शिवाजी महाराज ने इसका सफल प्रयोग करते हुए मुगलों पर सफलता प्राप्त की। 
  • महाराणा प्रताप मुग़ल सम्राट अकबर से नहीं हारे। उसे एवं उसके सेनापतियो को धुल चटाई । हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप जीते। महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी में पराजित होने के बाद स्वयं अकबर ने जून से दिसम्बर 1576 तक तीन बार विशाल सेना के साथ महाराणा पर आक्रमण किए, परंतु महाराणा को खोज नहीं पाए, बल्कि महाराणा के जाल में फँसकर पानी भोजन के अभाव में सेना का विनाश करवा बैठे। थक हारकर अकबर बांसवाड़ा होकर मालवा चला गया। पूरे सात माह मेवाड़ में रहने के बाद भी हाथ मलता अरब चला गया। शाहबाज खान के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध तीन बार सेना भेजी गई परन्तु असफल रहा। उसके बाद अब्दुल रहीम खान-खाना के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध सेना भिजवाई गई और पीट-पीटाकर लौट गया। 9 वर्ष तक निरन्तर अकबर पूरी शक्ति से महाराणा के विरुद्ध आक्रमण करता रहा। नुकसान उठाता रहा अन्त में थक हार कर उसने मेवाड़ की और देखना ही छोड़ दिया।
  • ऐसा कुअवसर प्रताप के जीवन में कभी नहीं आया कि उन्हें घास की रोटी खानी पड़ी अकबर को सन्धि के लिए पत्र लिखना पड़ा हो। इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप ने सुंगा पहाड़ पर एक बावड़ी का निर्माण करवाया और सुन्दर बगीचा लगवाया। महाराणा की सेना में एक राजा, तीन राव, सात रावत, 15000 अश्वरोही, 100 हाथी, 20000 पैदल और 100 वाजित्र थे। इतनी बड़ी सेना को खाद्य सहित सभी व्यवस्थाएँ महाराणा प्रताप करते थे। फिर ऐसी घटना कैसे हो सकती है कि महाराणा के परिवार को घास की रोटी खानी पड़ी। अपने उतरार्ध के बारह वर्ष सम्पूर्ण मेवाड़ पर शुशाशन स्थापित करते हुए उन्नत जीवन दिया। 


FAQ.


1. महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था?
- 9 मई,1540 को। 

2. महाराणा प्रताप के कितने रनिया थी?
- महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी। 

3. महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम क्या था?
- महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था।

4. महाराणा प्रताप के घोड़े की छलांग कितनी थी?
- महाराणा प्रताप के घोड़े की छलांग 26 फीट के करीबन थी।

5. चेतक पर सवार महाराणा प्रताप की प्रतिमा कहां स्थित है?
- ये स्मारक मोती मगरी के पास की चोटी पर फतेह सागर झील के किनारे स्थित है।

6. महाराणा प्रताप की रानी कौन थी?
- महाराणा प्रताप की रानी मीराबाई थी।

7. हल्दी घाटी का युध्द कब हुआ था?
- 21 जून 1576 को "हल्दीघाटी का युध्द" हुआ।

8. दिवेर का युध्द कब हुआ था?
- दिवेर का युध्द 1582 में हुआ था। 

9. महाराणा प्रताप को अन्य किन नामो से जाना जाता है?
- महाराणा  प्रताप को "मेवाड़ केसरी" व "हिन्दुआ सूरज" के नाम से भी जाने जाते है। 

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