महाराजा सवाई प्रतापसिंह द्वारा साहित्य, संगीत, चित्रकला, स्थापत्य, में दिया गया योगदान | Maharaja Sawai Pratapsingh Hindi

महाराजा सवाई प्रतापसिंह द्वारा साहित्य, संगीत, चित्रकला, स्थापत्य, में दिया गया योगदान | Maharaja Sawai Pratapsingh Hindi


महाराजा सवाई प्रतापसिंह द्वारा साहित्य, संगीत, चित्रकला, स्थापत्य, में दिया गया योगदान | Maharaja Sawai Pratapsingh Hindi


महाराजा सवाई प्रतापसिंह ( 1778-1803 )


सवाई प्रताप का जन्म 2 दिसंबर 1764 को माधो सिंह प्रथम के छोटे बेटे के रूप में हुआ था। प्रताप सिंह अपने भाई पृथ्वी सिंह की मृत्यु के बाद 14 वर्ष की आयु में महाराजा बने। उन्होंने 1778 से 1803 तक शासन किया। उनके 25 साल के शासन में कई शानदार उपलब्धियां और रणनीतिक विफलताएं भी देखी गईं। मराठों और मुगलों द्वारा लगातार उकसाए जाने के कारण, उन्हें बार-बार धमकियों और धन की भारी निकासी का सामना करना पड़ा।

हवा महल का निर्माण प्रताप सिंह ने करवाया था। उनकी पारखीता का सबसे अच्छा उदाहरण हवा महल (हवाओं का महल) का अनूठा स्मारक और सिटी पैलेस के कुछ कमरे हैं, जिन्हें उन्होंने बनवाया था। उनके समय में बड़ी संख्या में विद्वानों के कार्यों का निर्माण किया गया था। वे स्वयं एक अच्छे कवि थे और ब्रजनिधि के उपनाम से ब्रजभाषा और धुंधारी भाषा में कविताएँ लिखते थे।


सवाई प्रताप सिंह मात्र चौदह वर्ष की अवस्था में सिंहासनारूढ़ हो गए थे। युद्धों में अत्यधिक व्यस्त एवं रोगों से ग्रस्त रहने पर भी उन्होंने अपने अल्प जीवन में लगभग 1400 वृत्तों का प्रणयन किया। लोकविश्रुत है कि महाराज परम भागवत थे। भक्ति-रस-तरंग अथवा मन की उमंग में वे जो पद,लिखते या छंद रचते, उन्हें उसी दिन या अगले दिन अपने इष्टदेव गोविंददेव तथा ठाकुर ब्रजनिधि महाराज को समर्पित करते थे। कम से कम पाँच वृत्त नित्य भेंट करने का उनका नियम था।

महाराजा सवाई प्रतापसिंह 16 अप्रैल , 1778 को जयपुर के शासक बने।
शासन ग्रहण करने के कुछ समय बाद ही मुग़ल सेनापति नजफ़ खाँ ने अक्टूबर , 1780 में जयपुर पर आक्रमण कर उसे घेर लिया। राज्य  प्रधान खुशालीराम बोहरा ने येन केन प्रकारेण नफज खाँ को संधि हेतु राजी कर लिया तथा उसे 21 लाख रूपये देना तय हुआ जिसमे 2 लाख रु. तुरंत एवं शेष 75000 की मासिक किस्तों में देना था। महाराजा प्रताप सिंह का विवाह जोधपुर शासक विजयसिंह की पोत्री से अगस्त , 1785 में सम्पन हुआ। महाराजा विजयसिंह ने सवाई प्रतापसिंह को मराठो के विरुध्द पूरी सहायता प्रदान करने हेतु आशवस्त किया।
महाराजा प्रतापसिंह एक कवि , लेखक , संगीत एवं शिल्पशास्त्र का अच्छा ज्ञाता एवं विद्वानों , शिल्पियों एवं कलाकारों को आश्रय प्रदान करने वाला शासक था।

साहित्य : 


महाराजा प्रतापसिंह अपने पुरे शासनकाल में युध्दो में उलझे रहे। फिर भी उनके एक अच्छा विद्यानुरागी एवं शिल्पप्रेमी होने के कारण जयपुर राज्य में साहित्य , कला एवं संस्कृति व शिल्प की अच्छी उन्नति हुई। सवाई प्रतापसिंह न केवल विद्वानों , शिल्पशात्रियो एवं संगीतज्ञों के आश्रयदाता थे बल्कि स्वयं भी एक अच्छे लेखक एवं कवि थे। वे स्वयं ब्रजनिधि नाम से ढूँढाड़ी एवं ब्रज भाषा में काव्य रचना करते थे। उन्होंने ब्रजनिधि मुक्तावली , ब्रज शृंगार , ब्रजनिधि पद , प्रीतिलता , प्रेम प्रकाश , प्रीति पच्चीसी , प्रेम पंथ , दू:खहरण वेलि , स्रेह संग्राम , मुरली विहार , फांगरंग , रंग चौपड़ , रमक-झमक बत्तीसी , आदि काव्य ग्रंथो की रचना की। प्रतापसिंह के काव्य गुरु गणपति भारती थे।

संगीत : 


महाराजा प्रतापसिंह के संगीत गुरु उस्ताद चाँद खाँ थे। स्वयं की संगीत के प्रति अत्यधिक रूचि होने एवं संगीत का पर्याप्त ज्ञान होने के कारण इनके शासनकाल में संगीत के क्षेत्र में उन्नति हुई। इनके दरबारी कवि पुंडरीक विट्ठल ने नर्तन निर्णय , ब्रजकला निधि , राग चन्द्रसेन आदि संगीत ग्रंथो की एवं राधाकृष्ण ने राग रत्नाकर ग्रन्थ की रचना की।


चित्रकला : 


कला संगीत एवं साहित्य की अन्य विधाओं के साथ-साथ प्रतापसिंह चित्रकला के भी अच्छे अन्वेषक थे। उनके शासन काल में राधाकृष्ण की लीलाओ , बाहरमासा , नायिकाभेद , आदि विषयो का चित्रण पर्याप्त मात्रा में हुआ। इनके समय राग-रागनियाँ , रामायण , भागवत , दुर्गसप्तशती एवं गीत गोविन्द आदि पर भी अनेक चित्र चित्रित किये गये।

स्थापत्य : 


इन्होने 1799 ई. में जयपुर में पॉँच मंजिले प्रसिध्द हवामहल का निर्माण करवाया जो आज भी इनकी वास्तुकला की विश्वभर में अपनी अलग छाप लिए खड़ा है। हवामहल का निर्माण वास्तुविद लालचंद की देखरेख में करवाया गया। इसका हवामहल नाम इस लिए पड़ा कि इसमें इतनी खिड़कियाँ है तथा उनमे से इतनी शीतल हवा आती है कि गर्मी का अहसास नहीं होता। हवामहल के बाहर की बनावट भगवान कृष्ण के मुकुट की आकृति के सम्मान है। 1 अगस्त , 1803 ई. को महाराजा सवाई प्रतापसिंह का देहावसान हो गया।

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