महाराणा अमरसिंह प्रथम का जीवन परिचय | Maharana Amarsingh I Hindi Biography


महाराणा अमरसिंह प्रथम का जीवन परिचय | Maharana Amarsingh I Hindi Biography 


महाराणा अमरसिंह प्रथम का जीवन परिचय | Maharana Amarsingh I Hindi Biography


महाराणा अमरसिंह प्रथम का जीवन परिचय 


अमर सिंह महाराणा प्रताप के सबसे बड़े पुत्र थे। उनका परिवार मेवाड़ के शाही परिवार का सिसोदिया राजपूत था। उनका जन्म चित्तौड़ में 16 मार्च 1559 को महाराणा प्रताप और महारानी अजबदे पुंवर के घर हुआ था, उसी वर्ष, जब उदयपुर की नींव उनके दादा उदय सिंह द्वितीय ने रखी थी। महाराणा प्रताप ने 19 जनवरी 1597 में अपनी मृत्यु के समय अमर सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया और 26 जनवरी 1620 को अपनी मृत्यु तक मेवाड़ के शासक रहे।

महाराणा अमर सिंह के काल में सामन्तो में नेतृत्व को लेकर एक प्रकार से प्रतिस्पर्ध्दा सी चल रही थी। अतः महाराणा ने इनके बीच बढ़ते हुए वैमनस्य को समाप्त करने हेतु इन जागीदार सामन्तो के पद एवं अधिकारों के समुचित विधि विधान व नियम बना दिये। उनकी जागीरे ,उनके पट्टे-परवाने आदि आवश्यकतानुसार बदलकर महाराणा ने इनकी अच्छी एवं कुशल सेवाओं के महत्व को और बढ़ा दिया। 

अमरसिंह ने राज्य की के साधनो को बढ़ाने हेतु उजड़ी हुई बस्तियों को आबाद करवाया। उन्होंने कई बेघर परिवारों को केलवा ,मुरोली ,रामपुरा ,साहड़ा आदि गाँवो में बसाया। इसके अलावा उन्होने केंद्रीय सेना को पुनः सुगठित किया। महाराणा अमरसिंह ने सैन्य शासन का एक अलग विभाग गठित कर उसका अध्यक्ष हरिदास झाला को बनाकर उसे सम्पूर्ण सैन्य संचालन का भर दे दिया। 
महाराणा को अपने राज्य की व्यवस्था को दुरस्त करते हुए दो वर्ष हुए कि बादशाह अकबर ने सन 1599 ई. में शहजादा सलीम को मेवाड़ पर आक्रमण करने भेज दिया। परन्तु शहजादा थोड़े समय तक उदयपुर तक जाकर वापस लौट आया। 

इसके बाद महाराणा अमरसिंह ने एक-एक कर मुग़ल थानों पर आक्रमण कर अधिकार करना प्रारम्भ किया। बागोर के थाने के अधिकारी सुल्तान खाँ ,ऊँटाला के किले के कलूम खाँ आदि को राजपूती सेना ने मौत के घाट उतारकर वहाँ अधिकार स्थापित किया। 1605 ई. में सलीम बादशाह जहाँगीर के नाम दिल्ली का सम्राट बना।

इसके बाद उसने 1605 ई. में  बादशाह अकबर अनुसरण करते हुए परवेज आसिफ खाँ एवं जफरबेग के नेतृत्व में मुग़ल सेना को मेवाड़ अभियान पर रवाना किया। " तुजुके जहाँगीरी " के अनुसार इस अभियान में मुगलो को कोई विशेष सफलता नहीं मिल पाई। जहाँगीर ने 1608 ई. में महाबतखाँ के नेतृत्व में पुनः मेवाड़ में सेना भेजी। वह सागर खाँ को चितौड़ एवं जगन्नाथ का मांडलगढ़ छोड़कर बिना कोई विशेष सफलता प्राप्त किये लौट आया।उसके बाद 1609 ई.एवं 1612 ई. में पुनः अब्दुल्ला एवं राजा बासू के नेतृत्व में सेना मेवाड़ भेजी गई। इसके हमलो के कारण महाराणा अमरसिंह को 1613 में चावंड एवं मेरपुर को छोड़ना पड़ा।

युध्दो की इस लम्बी अवधि में मेवाड़ की आर्थिक स्थिति अत्यंत डावाडोल हो चुकी थी। गाँव के गाँव उजाड़ हो गये एवं फसले नष्ट हो गई। विजेताओं मुगलो ने स्त्री व बच्चो को गुलाम बनाकर बेचना शुरू कर दिया। समस्त सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था छिन्न-बिन्न हो गई। ऐसी स्थति में राज्य के सभी प्रमुख सरदार-सामंतो एवं कुँवर कर्ण सिंह द्वारा मुगलो से संधि करने का सामूहिक प्रस्ताव महाराणा अमरसिंह के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

महाराणा सामूहिक निर्णय को अपने व्यक्तिगत विचारो पर तरजीह दी एवं प्रस्ताव का अनुमोदन कर दिया। संधि का प्रस्ताव लेकर महाराणा  की और से हरिदास झाला एवं शुभकर्ण को शहजादे खुर्रम के पास  गोगुन्दा भेजा गया। खुर्रम ने मुल्ला शक्रुल्लाह शिराजी एवं सुन्दरदास के साथ प्रस्ताव बादशाह जहाँगीर के पास अजमेर भेज दिया। बादशाह संधि का प्रस्ताव देखकर निश्चित हुआ तथा उसने तुरंत संधि की प्रस्तावित शर्तो की स्वीकृति अपने पंजे के चिन्ह के साथ खुर्रम के पास भिजवा दी। खुर्रम ने शक्रुल्लाह एवं सुन्दरदास को स्वीकृति का फरमान देकर महाराणा अमरसिंह के पास भेज दिया। अततः 5 फ़रवरी ,1615 ई. को महाराणा अमरसिंह एवं मुग़ल बादशाह जहाँगीर के मध्य यह संधि हुई।

1.  महाराणा स्वयं खुर्रम के पास आयेंगे तथा महाराणा बादशाह के दरबार में कभी उपस्थित नहीं होंगे ,
2 . महाराणा का ज्येष्ठ कुँवर शाही उपस्थित होगा।
3 . शाही सेना में महाराणा 1000 सवार रखेगा।
4 . चितौड़ महाराणा को सौंप दिया जाएगा परन्तु  चितौड़ के किले की मरम्मत न की जाएगी।

संधि के तहत महाराणा 5 फ़रवरी को ही खुर्रम से मिलने गोगुन्दा गये। इस प्रकार गुहिल से अनुमानतः 1050 वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का अंत हुआ। 19 फरवरी ,1615 को कुँवर कर्ण सिंह को लेकर शहजादा खुर्रम दलबल सहित बादशाह के दरबार में अजमेर पहुँचा।
26 जनवरी ,1620 को महाराणा अमरसिंह का देहांत उदयपुर में हुआ और उनकी अंत्यष्टि आहड़ में गंगोदभव के निकट हुई। आहड़ की महासतियों में सबसे पहली छतरी महाराणा अमरसिंह की है।

कर्नल टॉड ने महाराणा अमर सिंह के लिए लिखा है " वह प्रताप एवं अपने कुल सुयोग्य वंशधर था। वह वीर पुरुष के समस्त शारीरिक व मानसिक गुणों से सम्पन तथा मेवाड़ के राजाओ में सबसे अधिक ऊँचा व बलिष्ठ था। वह उदारता तथा पराक्रम आदि सद्गुणों के कारण सरदारों को और न्याय तथा दयालुता के कारण अपनी प्रजा को प्रिय था। " पं. गौरीशंकर ओझा ने अमरसिंह को " वीर पिता का वीर पुत्र " कहा है।

FAQ.


 1. राणा प्रताप के बाद मेवाड़ का राणा कौन बना?
 – राणा प्रताप के बाद उनका पुत्र अमरसिंह मेवाड़ का राणा बना। 

2. राणा अमरसिंह का राज्याभिषेक कब हुआ था?
 – राणा अमरसिंह का राज्याभिषेक 19 जनवरी, 1597 को हुआ था। 

3. राणा अमरसिंह का राज्याभिषेक कहाँ हुआ था?
 – राणा अमरसिंह का राज्याभिषेक नई राजधानी चावण्ड में हुआ था। 

4. महाराणा अमरसिंह के काल को क्या कहा जाता है?
 – महाराणा अमरसिंह के काल को ‘राजपूत काल का अभ्युदय’ कहा जाता है। 

5. राणा अमरसिंह ने अपना मन मारकर मुगलों से कब संधि की हामी भर दी थी?
 – राणा अमरसिंह ने अपना मन मारकर मुगलों से फरवरी, 1615 ई. में संधि की हामी भर दी। 

6. मुगलों से संधि करने वाला मेवाड़ का प्रथम शासक कौन था?
 – अमरसिंह मुगलों से संधि करने वाला मेवाड़ का प्रथम शासक था। 

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