1857 की क्रांति में शहीद होने वाले राजस्थान के प्रथम क्रांतिकारी अमरचन्द बाठिया | seth amarchand bathia hindi
अमरचन्द बाठिया का जन्म राजस्थान के बिकानेर जिले में 1793 में हुआ था। देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा शुरू से ही था। बाल्यकाल ठान रखा था की देश की आन-बान और शान के लिए कुछ कर गुरजना है।
इतिहास में स्व. अमरचंद बाठिया के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती, लेकिन कहा जाता है कि पिता के व्यावसायिक घाटे ने बांठिया परिवार को राजस्थान से ग्वालियर कूच करने के लिए मजबूर कर दिया और यह परिवार सराफा बाजार में आकर बस गया। ग्वालियर की तत्कालीन सिंधिया रियासत के महाराज ने उनकी कीर्ति से प्रभावित होकर उन्हें राजकोष का कोषाध्यक्ष बना दिया। उस समय ग्वालियर का गंगाजली खजाना गुप्त रूप से सुरक्षित था जिसकी जानकारी केवल चुनिन्दा लोगों को ही थी। बांठिया जी भी उनमें से एक थे। वस्तुतः वे खजाने के रक्षक ही नहीं वरन ज्ञाता भी थे। उनकी सादगी, सरलता तथा कर्तव्य परायणता के सभी कायल थे।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम अपने पूर्ण यौवन पर था , किन्तु दुर्भाग्य से तत्कालीन सिंधिया रियासत अंग्रेजों की मित्र थी। एक अधिकारी ने एक दिन जैन मत मानने वाले अमर चंद बांठिया जी से कहा कि भारत माता को दासता से मुक्त करने के लिए अब तो आपको भी अहिंसा छोड़कर शस्त्र उठा लेना चाहिए। बांठिया जी ने कहा कि भाई मैं हथियार तो नहीं उठा सकता, किन्तु एक दिन समय आने पर ऐसा काम करूंगा जिससे क्रान्ति के पुजारियों को मदद मिलेगी। तभी ग्वालियर पर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का अधिकार हो गया तथा अंग्रेजों के सहयोगी शासक वहां से हटने को विवश हुए।
दूसरी तरफ रानी लक्ष्मीबाई तथा तात्या टोपे अपने सैन्य बल के साथ अंग्रेजो से लोहा ले रहे थे ,किन्तु उनकी सेना को कई महीनो से न तो वेतन प्राप्त हुआ था और न ही उनके भोजन आदि की समुचित व्यवस्था थी। इस कारण स्वाधीनता समर दम तोड़ता दिखाई दे रहा था। इस स्थिति को देखते हुए बाठिया जी ने अपनी जान की परवाह न कर क्रांतिकारियों की मदद की तथा ग्वालियर का राजकोष उनके हवाले कर दिया। बाद में अमरचन्द बाठिया को राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया और उनके निवास स्थान के नजदीक सराफा बाजार में ही सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटका दिया।
ये प्रथम स्वतंत्र सेनानी थे जिन्हे 1857 ई. के समर में अंग्रेजो ने फाँसी पर लटकाया था।
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