गोपालसिंह खरवा का जीवन परिचय | Rao Gopal Sinhg Kharwa Hindi Biography

गोपालसिंह खरवा का जीवन परिचय | Rao Gopal Sinhg Kharwa Hindi Biography


गोपालसिंह खरवा का जीवन परिचय | Rao Gopal Sinhg Kharwa Hindi Biography


गोपालसिंह  खरवा 

नाम             -  राव गोपालसिंह खरवा

जन्म             -     19 अक्टूबर1873 

पिता             -   राव माधोसिंह

शिक्षा            -     मेयो कोलेज अजमेर

संस्थापक     -   वीर भारत सभा

डाक टिकट  -   30 मार्च, 1989

मृत्यु             -    12 मार्च 1939


गोपालसिंह खरवा का जीवन परिचय 

गोपाल सिंह खरवा का जन्म खरवा के शासक राव माधोसिंह जी की रानी गुलाब कुंवरीजी चुण्डावत के गर्भ से 19 अक्टूबर 1873 को हुआ था। इनके पिता जी माधोसिंहजी खरवा के कुंवर पद पर थे। उनकी माता करेड़ा (मेवाड़) के राव भवानीसिंह चुण्डावत की पुत्री थी। कुंवरगोपालसिंह 12 वर्ष की उम्र में ही घुड़सवारी और निशानेबाजी में निपुण हो चुके थे। साहस और निर्भीकता उनमे कूट कूट कर भरी थी। गोपालसिंह खरवा स्वाधीनता संग्राम के उभरते हुए सेनानी, देशप्रेम के दीवाने, क्रांति के अग्रदूत और त्याग के तीर्थ थे। एक प्रतिष्ठित सामन्ती घराने में जन्म लेकर उन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी वंशानुगत जागीर सहित अपना सब कुछ दांव पर लगा कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का बिगुल बजा दिया था।


गोपालसिंह की शिक्षा 

1885 में गोपालसिंह ने मेयो कालेज अजमेर में दाखिला लिया जहाँ छह वर्ष तक शिक्षा ग्रहण के बाद गोपालसिंह ने मेयो कालेज छोड़ दिया। अपनी पढाई बीच में छोड़ देने के चलते राव गोपाल सिंह की शिक्षा उच्च स्तर तक नहीं पहुँच पाई पर घर पर उन्होंने संस्कृत,हिंदी,अंग्रेजी,इतिहास,राजनीती व वेदांत का उचित अध्ययन किया। प्राचीन ग्रंथो के साथ भारतीय क्षत्रियों के इतिहास व खनिज धातुओं के वे अच्छे विशेषज्ञ थे। अंग्रेजी वे धाराप्रवाह बोलने माहिर थे।


राव गोपालसिंह का छपनिया अकाल में जन सहायता


राव गोपालसिंह के शासक बनते ही 1899-1900 में राजस्थान में भयानक अकाल पड़ा। बिना अन्न मनुष्य व बिना चारे के पशु मरने लगे। बुजुर्ग बताते हैं कि उस अकाल में अन्न की इतनी कमी थी कि लोग खेजड़ी के पेड़ों की छाल पीस कर खा लेते थे। पूरे राजस्थान में हा हा कार मच गया था। उस विषम स्थिति से निपटने व अपनी जनता को भुखमरी से बचाने के लिए राव गोपालसिंह खरवा ने अपने छोटे से राज्य के खजाने जनता को भोजन उपलब्ध कराने के लिए खोल दिए थे। भूखे लोगों को भोजन के लिए उन्होंने जगह जगह भोजनालय खोल दिए थे जहाँ खिचड़ा बनवाकर लोगों को खिलाया जाता था। चूँकि उनकी जागीर के आय के स्रोत बहुत सिमित थे अत: जनता को भुखमरी से बचाने हेतु उन्हें अपनी जागीर के कई गांव गिरवी रखकर अजमेर व ब्यावर के सेठो से कर्ज लेना पड़ा था। उनके इस उदार व मानवीय चरित्र की हर और प्रशंसा हुई वे जनता के दिलों में राज करने लगे। यह अकाल हिंदी तिथि ( विक्रम संवत 1956 ) में पड़ने के कारण इसे छपनिया अकाल कहा गया। 


गोपालसिंह का शिक्षा के क्षेत्र में कार्य 


राजस्थान में उस कालखंड में शिक्षा के साधन नगण्य थे लोगों में शिक्षा के प्रति रूचि का अभाव था। राव गोपालसिंह ने शिक्षा की महत्ता को पहचाना और पढने के इच्छुक अनेक बालको को छात्रवृतियां प्रदान की और उन्हें आर्य समाज के छात्रवासों में भर्ती कराया। उन्होंने अजमेर व मारवाड़ राज्यों के गांवों में शिक्षा को बढ़ावा देने व अपने बालको को शिक्षा के लिए भेजने को प्रेरित करने हेतु प्रचारक-उपदेशक भेजे। कई गांवों के जागीरदारों ने उनके इस कार्य की मुक्त कंठ से प्रसंसा की और उन्हें धन्यवाद के पत्र भेजे।


विदेशी वस्त्रों की होली


खरवा (खरवा अजमेर से कुछ दूर ब्यावर मार्ग पर एक राजपूत ठिकाना ) उस कालखंड में राष्ट्रीयता का प्रमुख केंद्र बन चूका था। देशप्रेम की भावना वहां के जनमानस में हिलोरें मार रही थी। ब्यावर के सेठ दामोदरदास राठी के खरवा बार बार आने से वहां के महाजनों के मन में भी देश के प्रति समर्पण की भावना का उदय हुआ। 14 May 1907 को खरवा के दुकानदारों और महाजनों ने अपनी देशभक्ति का जबरदस्त प्रदर्शन करने हेतु बिलायती खांड बेचना बंद करने का निर्णय लिया साथ ही विदेशी वस्त्रों की होली जलाई और राव गोपालसिंह के कहने पर स्वदेशी वस्त्र ही पहनने की शपथ ली। इस कार्य में महाजनों के अतिरिक्त सभी वर्गों ने साथ देकर स्वाधीनता संग्राम में अपना योगदान दिया।


गोपालसिंह खरवा नजरबन्द


21 फ़रवरी 1915 की रात को वे दो हजार सशस्त्र सेनिको के साथ खरवा के जंगलो में क्रांति की तैयारी कर रहे थे, लेकिन मुखबिर कृपालसिंह नारंग ने उनके छिपे होने की सूचना सरकार को दे दी। इसके बाद कमिशनर पांच सौ सेनिको की टुकड़ी लेकर वहां जा पहुंचा। 

कमिशनर ने शांतिपूर्ण समझौता करवाकर गोपाल सिंह को टाडगढ़ किले में नजरबन्द कर दिया गया। तब उन्हें अपने हथियारों व कुछ सेवको और विश्वस्त साथियों को साथ रखने की छुट भी दी गयी थी। उस काल लाहौर कांड में पकडे गए एक क्रांतिकारी ने अपने बयानों में राव गोपाल सिंह खरवा के सेकेट्री भूपसिंह (जो बाद में विजयसिंह पथिक के नाम से मशहूर हुआ) से मिलने व खरवा से बंदूकें व कारतूस मिलने की बात कही थी। नजर बंदी के दौरान राव साहब को पता चला कि सरकार उनके हथियार छिनकर उन्हें निहत्था करना चाहती है और वे निहत्था होना क्षत्रिय धर्म के विरुद्ध मानते थे। साथ ही उन्हें उनके नजर बंद किये जाने के बाद खरवा के ग्रामीणों पर पुलिस अत्याचार की खबरे भी मिल चुकी थी। अत: स्वाभिमान के धनि राव साहब ने अपने निजी सेवकों को उनके घर भेज दिया व 9 जुलाई 1915 को वे नजर बंदी की अवज्ञा कर टोडगढ़ से अपनी घेराबंदी तोड़ कर निकल गए।


अंग्रेजों द्वारा गोपाल सिंह पर आरोप पत्र


राव गोपाल सिंह खरवा की अंग्रेज विरोधी नीति से अंग्रेज अधिकारी पहले ही नाराज थे और नीमेज हत्याकांड में पकडे गए क्रांतिकारी सोमदत्त लहरी के बयानों के बाद अंग्रेज सरकार को पक्का संदेह हो गया कि राव गोपाल सिंह खरवा क्रांतिकारियों को सहयोग दे रहे हैं व खुद भी अंग्रेज विरोधी गतिविधियों में शामिल है अत: अजमेर के जिला कलेक्टर मि.ए टी होमर ने 23 अक्टूबर 1914 को एक आरोप पत्र भेज जबाब माँगा -
1- आप राजपूतों को सरकार के विरुद्ध बगावत करने को तैयार कर रहे हैं।
2 - नीमेज हत्याकांड का आरोपी सोमदत्त भी आपके खर्चे से पढ़ा हुआ, ऐसे कार्यों में सलंग्न व्यक्ति है।
3 -विष्णुदत्त एक अराजक नेता है। कोटा और नीमेज हत्याकांडों का प्रमुख अभियुक्त है। वह आपके पास आता जाता है और उपदेशक के रूप में गांवों में भेजा जाता है।
4 -नारायणसिंह जिस पर आराजकता का अभियोग था और बंदी बनाएं जाने से पूर्व ही मर गया आपके खर्च पर शिक्षा पाया हुआ था।
5 - गाडसिंह भी आपके रहने वाला व्यक्ति था।
6 -मि.आर्मस्ट्रांग की तहकीकात में आप स्वीकार कर चुके हैं कि ठाकुर केसरी सिंह बारहट आपका मित्र है और वह खरवा आता रहता था।
उपयुक्त आरोपों का राव गोपाल सिंह खरवा ने समुचित उत्तर देकर टाल दिया।


गोपाल सिंह खरवा ने अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए निरन्तर प्रयत्न्शील रहे। 1939 में उनका निधन हो गया। केंद्रीय संचार मंत्रालय ने 30 मार्च, 1989 को उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया। 

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