दुरसाजी आढ़ा का जीवन परिचय | dursa adha hindi biography

दुरसाजी आढ़ा का जीवन परिचय | dursa adha hindi biography


दुरसाजी आढ़ा का जीवन परिचय | dursa adha


आबू के अचलेश्वर मंदिर में दुरसा की पीतल की प्रतिमा स्थापित है। कहते है की दुरसा के जीवनकाल में ही उनको यह सम्मान प्रदान  किया गया था। 

वक्त पर किसी का सहारा मिल जाए तो अभावो में पलने वालो की प्रतिमा को नई दिशा मिल सकती है। योध्दा व कवि दुरसा आढा भी ऐसे ही व्यक्तित्व थे जिनका बचपन अभावो में गुजरा। खेतो पर बाल श्रमिक के रूप में काम करते वक्त यातनाए भी सही। 

दुरसाजी आढ़ा का जीवन परिचय 


दुरसाजी आढ़ा का जन्म 1535 ए.डी. (विक्रम संवत 1592 माघ सुदी चौहदस) में सोजत परगने (पाली) व मारवाड़ राज्य के धूँदला गांव में चारणों की आढ़ा शाखा में हुआ था। उनके पिताजी मेहाजी आढ़ा हिंगलाज माता के भक्त थे और उन्होंने तीन बार बलूचिस्तान में हिंगलाज शक्तिपीठ की तीर्थयात्रा की। उनके पूर्वज जालौर जिले के असाडा के गांव से संबन्धित थे और इस प्रकार उनकी शाखा का नाम आढ़ा पड़ा। दुरसाजी आढ़ा अपने पिता की ओर से गौतम के वंश में पैदा हुआ थे, जबकि उनकी मां धनी बाईजी चारणों की बोगसा शाखा से थी व विख्यात गोविंदजी बोगसा की बहन थी। जब दुरसाजी छह वर्ष के थे, उनके भक्त पिता मेहाजी आढ़ा फिर से हिंगलाज की तीर्थ यात्रा पर चले गए और इस बार उन्होंने वहीं पर संन्यास ले लिया। इसलिए पिता की अनुपस्थिति में घर चलाने के लिए उन्हें एक किसान के खेत में बाल मजदूर का काम करना पड़ा।

एक बार खेत मालिक ने नाली का पानी को रोकने के लिए दुरसा को ही लेटा दिया था। ठीक उसी वक्त आखेट ( शिकार ) पर निकले बगड़ी के सामंत प्रतापसिंह वहां कुए पर घोड़ों को पानी पिलाने आए। वहां पास में ही नाली में लेटे बालक दुरसा पर उनकी नजर पड़ी। 

प्रतापसिंह ने दुरसा को वहां से मुक्त कराकर अपने साथ सोजत ले आए। वही दुरसा की शिक्षा-दीक्षा शुरू करवाई। यही बालक दुरसा अपनी प्रतिभा के बुते राजस्थान के परम तेजस्वी कवि और योध्दा के रूप विख्यात हुआ। 

मारवाड़ राज्य के सोजत परगने के पास धुंधला गांव में 1535 ई. दुरसा आढा का जन्म हुआ था। अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर इन्होने अकबर के दरबार में स्थान पा लिया था उन्होंने अकबर के सामने महाराणा प्रताप की प्रशंसा और अकबर की बुराई की। अकबर ने इन्हे लाख पवास सम्मन प्रदान था। 

आबू के अचलेश्वर मंदिर में दुरसा की पीतल की प्रतिमा स्थापित है। मंदिरो में आमतौर पर मनुष्यो की प्रतिमाए स्थापित नहीं होती है। परन्तु दुरसा इसके अपवाद है। 

दुरसाजी आढ़ा द्वारा लिखी गई कविताएँ 


दुरसाजी आढ़ा द्वारा लिखी गई कविताएँ ज्यादातर उस समय के शासकों की वीरता और युद्दों से संबंधित हैं, लेकिन कई सांसारिक मामलों का भी वर्णन करती हैं। अकबर और महाराणा प्रताप के बारे में उनके लेखन के मामले में, उन्होंने अपने विषयों की उपलब्धियों को व्यक्तिगत रूप से तब भी माना जब वे लगातार एक-दूसरे के विरोधी थे। उन्होंने हिंदू धर्म में अपनी गहरी आस्था व्यक्त थी, हिंदू नायकों की बहादुरी की सराहना की और मुगलों के अन्याय के बारे में लिखा। 

  • विरुद छिहत्तरी (महाराणा प्रताप के सम्मान में)
  • दोहा सोलंकी वीरमदेवजी रा
  • झूलना राव सुरतन रा
  • मरसिया राव सुरतन रा
  • झूलना राजा मानसिंह कच्छवाहा रा
  • झूलाना रावत मेघा रां
  • गीत राजी श्री रोहितासजी रा
  • झूलना राव अमरसिंह गजसिंहोत (नागौर के राव अमरसिंह की वीरतापूर्ण कविता)
  • किरतार बावनी
  • माताजी रा छंद
  • श्री कुमार अज्जाजी और भुचर मोरी नि गजगत


दुरसा की प्रसिध्द कृतियों में विरुध्द छिहत्तरी , किरतार बावनी , माताजी रो छंद ,मोरी री
गजगत तथा मानसिंह जी रा झूलणा आदि शामिल है। 1655 इनकामें निधन हो गया। 

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